Zulfikar Ali

जुल्फिकार अली

Author

आईए आपको मिलाते है पेन पाकेट बुक्स के स्टार लेखक ,शायर ,कवि , और समाजसेवी जुल्फिकार अली जी से । जुल्फिकार अली जी उतराखंड राज्य के हरिद्वार जिले की नगर पंचायत सुल्तानपुर के रहने वाले हैं । एस.बी.एन डिग्री कॉलेज में पढ़ाने के साथ साथ खिदमत वेलफेयर फाउंडेशन में उपसचिव के पद पर रहकर समाज सेवा में लगे हैं । साथ‌ ही साथ काव्य , ग़ज़ल, नज़्म , कहानी , उपन्यास आदि के जरिए साहित्य सेवा भी कर रहे हैं । जिसके लिए कई सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं । आपकी कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है । 

आपकी अब तक प्रकाशित पुस्तकें तथा रचनाएं हैं-

1. लुकास (खूनी दरिन्दा) उपन्यास 

2. तामीर-ए-जिन्दगी ( ग़ज़ल संग्रह)

3. गीताश्री में एक ग़ज़ल प्रकाशित

4. प्रतिलिपि पर निरंतर लेखन कार्य ।

5. लेखनी तथा कुछ अन्य डिजिटल माध्यम पर निरंतर लेखन।

6. साझा काव्य संग्रह ” फकीर तेरे गांव में” में जीवन परिचय सहित रचनाएं प्रकाशित ।

7.रेणु कृत ,साझा काव्य संग्रह में जीवन परिचय सहित रचनाओं का प्रकाशन।

जुल्फिकार अली जी , इंकलाब पब्लिकेशन द्वारा उत्कृष्ट काव्यसृजन सम्मान तथा गीताश्री साहित्य भारती परिषद से काव्य गरीमा से सम्मानित हो चुके है । 

चलिए आपको जुल्फिकार अली से रुबरु कराते हैं ,और उनसे ही उनके बारे में जानकारी लेते हैं , और जानते हैं कि पेन पाकेट बुक्स के साथ जुड़कर उन्होंने कैसा महसूस किया है ? 

पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश -:

सबसे पहले हमारे पाठकों को संक्षेप मे अपना परिचय दीजिये ?

मेरा नाम जुल्फिकार अली है । मेरे अब्बू का नाम मरहूम जफर हसन , अम्मी का नाम रूकसाना तथा पत्नी का नाम अफसाना है । दो बच्चे हैं , बेटी का नाम अमायरा तथा बेटे का नाम जैनुल है ।

 बाकी अपना पता मैं इस प्रकार देता हूं –..

 

देवता  भी  जहां  हो  ठहरे, जो देवभूमि कहलाती है,

   नैनीताल में बर्फ की  चादर ,चंबा  की शाम सुहाती है।

 है साबिर पिया का कलियर और हरिद्वार सा धाम जहां,

  उत्तराखंड  है  नाम  जो  मेरी  जन्मभूमि  कहलाती  है।

 

 कच्ची चौपाल पे बचपन बीता,अलीचौक पे बीती जवानी है,

   जमा  मस्जिद की पांचों अज़ाने  लगती अब भी  सुहानी है।

   दादा  खान  सा  पीर जहां है, ईदगाह  मन  को  लुभाती  है,

   सुल्तानपुर  है  शहर मेरा   , जहां  ठहरा  ढाब  का  पानी है।

 

 लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?

अब्बू से । मेरे अब्बू को लिखने का शौक था , उन्होंने बहुत से आर्टिकल लिखे , जो कभी छप नहीं पाएं । एक किताब लिखनी शुरू की जो ,कभी पूरी नहीं हो पाई । उन्होंने बहुत कुछ लिखा ,लेकिन अफसोस कुछ भी छप नहीं पाया । क्योंकि उस समय किताबें छपवाना टेडी खीर होती थी । गांव के लेखकों के पास इस सम्बन्ध में ना तो ज्यादा जानकारी होती थी ,ना इतने साधन होते थे । उन्हें लिखना अच्छा लगता था और शायद उनका ये शौक ही मेरे अंदर ट्रांसफर हो गया । इसके अलावा मुझे बचपन से ही किताबें पढ़ना बहुत पसंद रहा है । ये समझ लीजिए किताबी कीड़ा रहा हूं । पढ़ने के साथ-साथ हमेशा से थोड़ा बहुत लिखता भी रहा हूं । मुझे याद है जब मैं छोटा था शायद 6th या 7th में था , तो मेंने एक छोटी सी कहानी लिखी थी , वो मेरी सबसे पहली रचना थी , लेकिन वक्त के साथ पता नहीं कहां खो गई । इसके अलावा बचपन से ही शायरी सुनने , लिखने और पेंटिंग करने का भी शौक रहा है , जब भी मैं उदास या परेशान होता तो पेंटिंग करता या ग़ज़लें , नज़्में लिखता था , जिससे मुझे सुकून मिलता था और ये सिलसिला अब भी जारी है   । शब्दों से खेलना मुझे अच्छा लगता है और शब्दों से खेलते खेलते पता ही नहीं चला कि कब मैं एक स्थापित लेखक बन गया । 

 

अपनी इस किताब के बारे मे कुछ बताइये ?

मेरी दूसरी किताब और पहला नॉवेल लुकास आपके सामने है । लुकास (खूनी दरिन्दा) सस्पेंस थ्रिलर , हॉरर ,‌फंटेसी नॉवेल है । ये कहानी एक वेमपायर के उत्थान और पतन की गाथा है , जिससे पाठक नफरत तो करेंगे , लेकिन कहीं ना कहीं वो दिलों पर अपनी छाप छोड़ जाएगा । कहानी निश्चित रूप से पाठकों का मनोरंजन करेगी , साथ ही साथ पाठक कहानी के एक एक पात्र से जुड़ते , उन्हें महसूस करते चले जाएंगे । लुकास एक्शन के साथ नफरत , मोहब्बत, गुस्से , देशभक्ति जैसे जज्बो से गुथी रचना है । इसको मेने पहले प्रतिलिपि पर लिखा था , वहां भी पाठकों का खूब प्यार मिला और उम्मीद के मुताबिक पेपर बेक में भी भरपूर प्यार मिल रहा है । 

 

एक लेखक को किताब लिखने और उसे प्रकाशित करने मे किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ?

मेरे हिसाब से जो लेखक होता है , उसे कभी भी लिखने में कोई दिक्कत नहीं आती क्योंकि लिखना उसकी हॉबी उसका पैशन होता है । बस अच्छा लेखक बनने के लिए व्याकरण का ध्यान रखना ज़रूरी है वरना रचना में निखार नहीं आता । लेखक को परेशानी का सामना अपनी किताब को प्रकाशित कराने में आता है । लेखक के सामने ये दिक्कत हमेशा से रही है और इसी दिक्कत की वजह से जाने कितने लेखक अपनी रचनाओं के साथ गुमनामी की ज़िंदगी जी रहे हैं , या गुम हो गए हैं। पहले ज्यादा पब्लिशिंग कम्पनियां नहीं थी ,जो थी उन-तक पहुंचना ही मुश्किल था । अब बहुत सारी कम्पनियां है लेकिन अब सही पब्लिशिंग हाउस चुनने की समस्या है । आज‌ बाजार में बहुत सारे ऐसे पब्लिशिंग हाउस है जो लेखकों को तरह तरह के लालच देकर उनसे मोटी रकम लेकर किताबें प्रकाशित तो करते हैं । लेकिन अपनी कमाई करके किताब लेखकों को‌ थमा के उसे उसकी किताब के साथ छोड़ देते । जिससे लेखक और उसकी किताब गुमनाम तो रहती ही है साथ में आर्थिक नुक्सान भी उठाना पड़ता है । इससे लेखकों का मनोबल गिरता है । बहुत से तो हताशा में लिखना ही छोड़ देते हैं । 

खैर इस मामले में मैं थोड़ा सा लक्की रहा हूं जो मुझे पेन पॉकेट का साथ मिला । पेन पाकेट बुक्स ऐसी पब्लिशिंग कम्पनी है, जो लेखकों की बेहतरीन रचनाओं को चुनती है ,परखती है और कंटेंट अच्छा हो तो निशुल्क प्रकाशित करके उल्टा लेखकों को पहचान दिलाती है , उनकी इनकम के रास्ते खोलती है । 

 

अपने नये पाठको को आपका कोई संदेश ?

किसी भी लेखक के लिए उसके पाठक सबसे अहम होते हैं । मेरे लिए भी मेरे पाठक मुझे बहुत अज़ीज़ है । अपने प्यारे पाठको से इतना कहना चाहता हूं कि मेरी किताब लुकाश को पढ़ें , अपनी समीक्षा दे । और हां ये सिर्फ शुरुआत है , आप मेरे साथ बने रहे , इंशाअल्लाह आगे आपको और भी बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा । मेरी निरंतर यही कोशिश रहती है कि मैं वो लिखुं जिसे पढ़ कर पाठक संतुष्टि महसूस करें । 

आपकी आगामी किताब के बारे मे कुछ कहना चाहेंगे ?

मेरी अगली किताब जिन्नलैंड है । जिन्नलैंड में आप एक अलग ही दुनिया की सैर करेंगे । उसमें आपको इंसानों , जिन्नातों , शैतानों के संबंध में ऐसे रहस्य पढ़ने को मिलेंगे जो पाठकों को एंटरटेनमेंट के साथ चौंकाएंगे , रोमांचित करेंगे । जिन्नातों और इंसानों की पैदाइश से लेकर अब तक की पूरी कहानी एक नए अंदाज में मिलेगी । जिन्नलैंड महागाथा है इसलिए 3-4 किताबों की पूरी श्रृंखला होगी । इसके अलावा एक लव स्टोरी ‘ रुदाद-ए-इश्क’ लिखी जा रही हैं । रुदाद-ए-इश्क ऐसी प्रेम कहानी है जो पाठकों के दिल को छू जाएंगी। 

 

नये लेखको को कोई सलाह कि उन्हे अपनी लेखनी और प्रकाशन पर क्या खास ध्यान देना चाहिए ?

नये लेखकों को मेरी यही सलाह है कि अगर आप एक अच्छा लेखक बनना चाहते हैं तो सबसे पहले व्याकरण पर काम करें , लेखन की शैलियों को समझें , ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ें । कहते हैं कि एक अच्छा लेखक पहले एक अच्छा पाठक होता है । उसके बाद आपने जो लिखा है उसे बार-बार पढ़ें , इससे आपको पता चलेगा कि हमने कहां ग़लत किया है । और सबसे अहम जो लिखे दिल से लिखे । 

प्रकाशन के संबंध में मेरी राय यही है कि ऐसे प्रकाशन को चुनें जो आपकी किताब को प्रकाशित करने के साथ-साथ उसे बाजार तक पहुंचाने में भी आपकी मदद करें । वैसे आजकल कई ओनलाइन प्लेटफार्म भी मौजूद जो लेखकों की रचनाएं प्रकाशित करके उन्हें आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं । 

पेन पॉकेट बुक्स प्रकाशन और दूसरे प्रकाशन मे क्या अंतर है ? 

जैसे कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि लक्की हूं जो सफर की शुरूआत में ही बेहतरीन पब्लिकेशन का साथ मिला । पेन पाकेट बुक्स द्वारा नये लेखकों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है । पेन पाकेट बुक्स के सदस्य लेखकों को ढूंढते हैं उन-तक पहुंचते हैं , उनकी रचनाओं का पहले खुद अध्यन करते हैं कंटेंट अच्छा हो तो लेखकों से बिना कोई शुल्क लिए उनकी किताबों को प्रकाशित करते हैं ,उनका प्रमोशन विभिन्न तरीकों से करते हैं । पेन पाकेट बुक्स के सदस्य ये सारे काम बहुत सफाई से और दिल लगा के करते हैं । मैं जब दुसरे प्रकाशन से इनकी तुलना करता हूं तो इन्हें बेस्ट पाता हूं ।और मैं ये सब इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैंने पहले भी अपनी किताब दुसरे प्रकाशन से प्रकाशित कराई है । मैं पेन पाकेट बुक्स के कामों से संतुष्ट हूं । मुझे याद है जब मेरी बात पहली बार अफजल भाई से हुई थी तो उन्होंने कहा था कि हम लेखकों पर बस एक ही जिम्मेदारी छोड़ते हैं कि आप अच्छे से अच्छा लिखिए , बाकी सब काम हमपर छोड़ दीजिए । जब मैं पेन पाकेट से जुड़ा तो पाया वाकई उन्होंने सही कहा था । मैं लेखकों से भी कहना चाहता हूं कि अगर आपने वाकई कुछ अच्छा लिखा है तो पेन पाकेट से जुड़िए । ये आपको स्टार बना देंगे । 

एक लेखक के तौर पर आपको किन संघर्षो का विशेष सामना करना पड़ा और उसे आपने कैसे निभाया ? 

संघर्ष जीवन का आधार है । एक लेखक के तौर पर मुझे भी थोड़ा बहुत संघर्ष करना पड़ा । जब आप कुछ करना चाहते हैं , आगे बढ़ना चाहते , लेकिन रास्ते नजर नहीं आते तो निराशा भी होती है । जब मेने लिखना शुरू किया था तो लगता था मेरी रचनाएं बस मुझ तक ही रह जाएगी , मेरे साथ ही खत्म हो जाएगी । क्योंकि मैं जिस जगह से आता हूं उसके आसपास भी कोई पब्लिशिंग कम्पनी नहीं है और बाहर की जानकारी नहीं थी । 

लेकिन वक्त बदला इंटरनेट का जमाना आया नये नये प्लेटफार्म मिलने लगे । ऐसे ही मैं प्रतिलिपि , लेखनी जैसे ओनलाइन प्लेटफार्म पर लिखने लगा। बस फिर नये नये रास्ते मिलने लगे । मेरी रचनाएं ओनलाइन प्लेटफार्म से निकल कर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी । मेरी पहली बुक प्रकाशित हुई लेकिन उसका अनुभव कुछ खास नहीं रहा फिर एक दिन प्रतिलिपि पर ही अफजल भाई का मेसेज आया और मैं अब पेन पाकेट से जुड कर खुश हुं ,अब मेरा ध्यान लिखने पर है , प्रकाशित करने की जिम्मेदारी पेन पाकेट बुक्स की । 

 

आपका बहोत बहोत शुक्रिया । आपको और आपकी किताब को ढेरो बधाई और शुभकामना ।

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