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SARABATIYA – BA LLB
सरबतिया अभी भी डरी सहमी चादर लपेटे पलंग पर बैठी थी। जब जब नरेन्द्र सिंह की उस पर नज़र पड़ती तो गुस्सा और बढ़ता। ये गुस्सा इतना बढ़ा कि वो सरबतिया का नाम ले गन्दी गन्दी गालियाँ बकने लगे। डरी सहमी होने के बावजूद अपमान सहते सहते सरबतिया के सब्र का बांध तब टूट गया जब नरेन्द्र ने उसे गन्दी नाली कह दिया। बस उसके मुँह से भी निकल गया कि मुझे गन्दी नाली कह रहे हो लेकिन जिस गटर मे तुम मुँह मारना चाहते थे उससे तो ये गन्दी नाली बहुत साफ़ सुथरी है। ये सुनते ही क्रोध मे अंधे हो रहे नरेन्द्र मे एक झटके से अपना रिवाल्वर वाला हाथ मुंशी जी के डर से काँपते हाथों से छुड़ाया और सरबतिया की ओर घुमाया। ये देख भावी अनहोनी की आशंका से अच्छू, नरेन्द्र के रिवाल्वर वाले हाथ पर झपटा । लेकिन वो शरीर का संतुलन न बरकरार रख सका और दोनों एक दूसरे को लिए दिये ज़मीन पर गिर पड़े। तभी गोली चलने की आवाज़ आई, जिससे एक क्षण को सन्नाटा सा हो गया। किसी की समझ मे ही नहीं आया कि दरअसल हुआ क्या ?
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